विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी Prev Next बाह्य अंतरिक्ष: नवाचार, सुरक्षा और स्थिरता

यह संपादकीय 21/10/2024 को लाइवमिंट में प्रकाशित “Musk’s SpaceX has taken significant leaps in space exploration” पर आधारित है। इस लेख में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में परिवर्तनकारी प्रगति को उजागर किया गया है, जिसमें स्पेसएक्स जैसी निजी कंपनियों के नेतृत्व में एक्सपेंडेबल रॉकेट से पुन: प्रयोज्य अंतरिक्ष यान में बदलाव पर प्रकाश डाला गया है। 

नील आर्मस्ट्रांग के ऐतिहासिक चंद्र यात्रा से लेकर स्पेसएक्स के क्रांतिकारी ‘चॉपस्टिक’ तक, मानवता की अंतरिक्ष महत्त्वाकांक्षाओं ने नवाचार और लागत-प्रभावशीलता में क्वांटम लीप लगाई है। स्पेसएक्स जैसे निजी भागीदारों द्वारा अग्रणी, एक्सपेंडेबल रॉकेट से पुन: प्रयोज्य अंतरिक्ष यान में प्रतिमान बदलाव ने अंतरिक्ष अन्वेषण की संभावनाओं का विस्तार करते हुए प्रक्षेपण लागत को उल्लेखनीय रूप से कम कर दिया है। जैसे-जैसे भारत ISRO और उभरते निजी भागीदारों के माध्यम से अपनी अंतरिक्ष क्षमताओं को प्रबल कर रहा है, तो इसका लक्ष्य एक सुदृढ़ R&D पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देने पर होना चाहिये जो समान तकनीकी सफलताओं को आगे बढ़ा सके।

विश्व भर में अंतरिक्ष क्षेत्र को आयाम देने वाले हालिया घटनाक्रम क्या हैं? 

  • अंतरिक्ष प्रक्षेपण सेवाओं का व्यवसायीकरण: पिछले 4 वर्षों में, स्पेसएक्स ने 13 मानव अंतरिक्ष उड़ान मिशन लॉन्च किये हैं, 50 चालक दल के सदस्यों को सुरक्षित रूप से पृथ्वी की कक्षा में भेजा है और वापस लाया है, जिससे प्रत्येक फाल्कन हेवी मिशन के लिये प्रक्षेपण लागत लगभग 67 मिलियन डॉलर तक कम हो गई है।
    • स्पेसएक्स ने हाल ही में 20वीं बार अपने फाल्कन 9 बूस्टर को लॉन्च करके पुन: प्रयोज्य रॉकेट प्रौद्योगिकी का प्रदर्शन किया।
    • मैकिन्से के एक अनुमान के अनुसार, इस व्यवसायीकरण से प्रक्षेपण लागत में कमी आई है तथा निम्न-पृथ्वी कक्षा (LEO) में भारी प्रक्षेपण की लागत 65,000 डॉलर प्रति किलोग्राम से घटकर मात्र 1,500 डॉलर प्रति किलोग्राम रह गई है।
    • अंतरिक्ष पर्यटन की पहल जैसे, ब्लू ओरिजिन के न्यू शेपर्ड ने वर्ष 2022 की घटना से पहले छह चालक दल वाली उड़ानें शुरू की थीं।
      • अरबपति जेफ बेजोस ने अपने रॉकेट न्यू शेपर्ड की पहली चालक दल वाली उड़ान के दौरान अंतरिक्ष की संक्षिप्त यात्रा शुरू की।
      • निजी अंतरिक्ष स्टेशनों के लिये योजनाएँ आगे बढ़ रही हैं, एक्ज़िओम वर्ष 2026 में अपने पहले मॉड्यूल लॉन्च की योजना बना रहा है।
  • स्माल सैटेलाइट कॉन्स्टेलेशन का उदयसितंबर 2024 तक 6,000 से अधिक परिचालन उपग्रहों के साथ स्टारलिंक अग्रणी रहा है, जो 60 से अधिक देशों में 2.3 मिलियन से अधिक ग्राहकों को इंटरनेट प्रदान कर रहा है।
    • अमेज़न के प्रोजेक्ट कुइपर की योजना वर्ष 2029 तक 3,236 उपग्रह प्रक्षेपित करने की है।
    • यूटेलसैट के साथ विलय के बाद वनवेब ने वैश्विक कवरेज के लिये 634 उपग्रह तैनात किये हैं।
    • चीन के गुओवांग कॉन्स्टेलेशन ने 13,000 सैटेलाइट की योजना बनाई है, जो इस विशाल कॉन्स्टेलेशन दौड़ में राष्ट्र अभिकर्त्ताओं के प्रवेश को चिह्नित करता है।
  • चंद्रमा मिशन पुनर्जागरण: भारत के चंद्रयान-3 ने अगस्त 2023 में ऐतिहासिक रूप से चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के निकट सॉफ्ट लैंडिंग की, जिससे भारत यह उपलब्धि हासिल करने वाला चौथा देश बन गया।
    • जापान के SLIM मिशन ने जनवरी 2024 में सटीक लैंडिंग क्षमताओं का प्रदर्शन किया। नासा का आर्टेमिस कार्यक्रम शुरू हो गया है, आर्टेमिस II वर्ष 2025 के लिये निर्धारित है, जबकि चीन वर्ष 2028 और 2035 के दौरान पूरा होने वाले एक चंद्र अनुसंधान स्टेशन की स्थापना की योजना बना रहा है।
    • इंट्यूटिव मशीन्स और एस्ट्रोबोटिक जैसी निजी कंपनियाँ वाणिज्यिक चंद्र पेलोड सेवाओं में अग्रणी हैं।
  • मंगल ग्रह अन्वेषण प्रगति: भारत का मंगलयानयूएई का होप प्रोबनासा का पर्सिवरेंस रोवर और चीन का तियानवेन-1/ज़ूरोंग मिशन मंगल ग्रह अन्वेषण के प्रमुख प्रगति हैं।
    • रोज़लिंड फ्रैंकलिन रोवर को वर्ष 2028 में मंगल ग्रह पर प्रक्षेपित किया जाना है।
    • इस मिशन का उद्देश्य मंगल ग्रह की सतह पर पूर्व जीवन के संकेतों की खोज करना तथा ग्रह के भू-विज्ञान और पर्यावरण के बारे में महत्त्वपूर्ण डेटा एकत्र करना है।
  • रक्षा अंतरिक्ष क्षमताएँ: अमेरिकी अंतरिक्ष बल को वित्त वर्ष 2024 के लिये 30 बिलियन डॉलर का बजट प्राप्त हुआ, जिसमें अंतरिक्ष डोमेन जागरूकता और रेज़िलिएंट सैटेलाइट नेटवर्क पर ध्यान केंद्रित किया गया।
    • भारत ने रक्षा अंतरिक्ष एजेंसी की स्थापना की और मिशन शक्ति के माध्यम से ASAT क्षमताओं का प्रदर्शन किया।
      • इसके अलावा, भारत वर्ष 2030 तक अपना स्वयं का अंतरिक्ष स्टेशन लॉन्च करने की योजना बना रहा है।
    • चीन द्वारा अंतरिक्ष में अपनी क्षमताओं का निरंतर विकास करने, जिसमें संभावित रोबोटिक आर्म प्रौद्योगिकी से युक्त SJ-21 उपग्रह भी शामिल है, ने अंतरिक्ष सुरक्षा पर वैश्विक ध्यान बढ़ाने को प्रेरित किया है।
  • गहन अंतरिक्ष अन्वेषण: नासा का OSIRIS-REx वर्ष 2023 में बेन्नू से क्षुद्रग्रह के नमूने सफलतापूर्वक वापस लाएगा।
    • बृहस्पति के चंद्रमाओं का अध्ययन करने के लिये ESA का JUICE मिशन लॉन्च किया गया। चीन ने नेपच्यून का अध्ययन करने के लिये अपने तियानवेन-4 मिशन की घोषणा की, जो इस विशालकाय हिम ग्रह के लिये पहला समर्पित मिशन है।
    • जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप दूरस्थ आकाशगंगाओं और बाह्यग्रहों के बारे में हमारी समझ में क्रांतिकारी बदलाव ला रहा है।

अंतरिक्ष क्षेत्र में प्रगति से उत्पन्न प्रमुख मुद्दे क्या हैं? 

  • अंतरिक्ष मलबा संकट: निम्न-पृथ्वी कक्षा (LEO) में लाखों मलबे के टुकड़े मौजूद हैं, जिनका आकार सॉफ्टबॉल के आकार से कम से कम 26,000 गुना या उससे भी बड़ा है, जो टकराने पर उपग्रह को नष्ट कर सकते हैं।
    • रूस का ASAT टेस्ट- 2021 से ट्रैक करने योग्य 1,500 से अधिक मलबे के टुकड़े उत्पन्न हुए।
    • फरवरी 2022 में स्टारलिंक और चीन के अंतरिक्ष स्टेशन के बीच टकराव के खतरे ने अंतर्राष्ट्रीय यातायात प्रबंधन की तत्काल आवश्यकता को उजागर किया है।
    • सफाई की लागत अरबों डॉलर आँकी गई है, जबकि वर्तमान तकनीक प्रतिवर्ष केवल कुछ वस्तुओं को हटाने तक ही सीमित है।
    • स्पेस ऑब्जेक्ट के कारण होने वाली हानि के लिये अंतर्राष्ट्रीय दायित्व पर कन्वेंशन (वर्ष 1972) और बाह्य अंतरिक्ष में प्रक्षेपित वस्तुओं के पंजीकरण पर कन्वेंशन (वर्ष 1976) सहित संयुक्त राष्ट्र संधियों का उद्देश्य अंतरिक्ष मलबे को विनियमित करना है।
      • हालाँकि ये फ्रेमवर्क क्रियान्वयन में बहुत हद तक अप्रभावी बने हुए हैं।
  • अंतरिक्ष का शस्त्रीकरण: अमेरिकी अंतरिक्ष बल का वर्ष 2024 का बजट 30 बिलियन डॉलर बढ़ाया गया, जिसमें अंतरिक्ष युद्ध क्षमताओं पर ध्यान केंद्रित किया गया।
    • हाल ही में संघर्षों के दौरान सैटेलाइट जामिंग की घटनाएँ (विशेष रूप से यूक्रेन में) अंतरिक्ष आधारित इलेक्ट्रॉनिक युद्ध में वृद्धि को दर्शाती हैं।
    • 80 से अधिक देशों के पास उपग्रह हैं और इनमें से कई देश अंतरिक्ष प्रणालियों और सेवाओं तक पहुँच को अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा में महत्त्वपूर्ण योगदानकर्त्ता मानते हैं, जिससे संभावित अंतरिक्ष सैन्यीकरण के बारे में चिंताएँ बढ़ रही हैं।
      • इसके अलावाविकासशील देशों को महत्त्वपूर्ण उपग्रह सेवाओं तक सीमित पहुँच के कारण ‘स्पेस डिवाइड’ का सामना करना पड़ रहा है, जिससे आपदा प्रबंधन और संचार प्रभावित हो रहा है।
  • प्रक्षेपणों का पर्यावरणीय प्रभाव: अध्ययनों से पता चलता है कि रॉकेट प्रक्षेपण से ओज़ोन परत का क्षय होता है तथा ठोस रॉकेट मोटरों से उत्सर्जित होने वाले एल्युमीनियम ऑक्साइड कण विशेष रूप से चिंताजनक हैं।
    • स्पेसएक्स की बढ़ी हुई प्रक्षेपण आवृत्ति के कारण ऊपरी वायुमंडल में महत्त्वपूर्ण प्रदूषक उत्सर्जित होते हैं तथा प्रत्येक फाल्कन 9 प्रक्षेपण से लगभग 336 टन CO2 उत्सर्जित होती है।
    • उपग्रहों के पुनःप्रवेश से ऊपरी वायुमंडल में एल्युमीनियम की मात्रा बढ़ रही है। प्रक्षेपण आवृत्ति में तेज़ी से हो रही वृद्धि के कारण पर्यावरणीय प्रभाव आकलन में विलंब हो रहा है।
  • कानूनी और नियामक अंतराल: आउटर स्पेस ट्रीटी-1967 वर्तमान वाणिज्यिक अंतरिक्ष गतिविधियों के लिये अपर्याप्त है।
    • अंतरिक्ष में संपत्ति के अधिकार अभी भी अनिर्धारित हैं, जिससे चंद्रमा और क्षुद्रग्रह खनन योजनाओं के लिये अनिश्चितता उत्पन्न हो रही है।
    • स्पेस टूरिज़्म एक नियामक ग्रे क्षेत्र में संचालित होता है, जहाँ नियामक निकाय वर्जिन गैलेक्टिक की उड़ान पथ विचलन घटना के बाद सुरक्षा मानकों को परिभाषित करने के लिये संघर्ष कर रहे हैं।
  • अंतरिक्ष स्पेक्ट्रम आवंटन संघर्ष: वर्ष 2019 के बाद से सैटेलाइट कॉन्स्टेलेशन अनुप्रयोगों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, जिससे उपलब्ध रेडियो आवृत्तियों पर दबाव पड़ रहा है।
    • सेकंड जनरेशन के स्टारलिंक उपग्रहों से 30 गुना अधिक रेडियो इंटरवेंशन लीक हो रहा है, जिससे खगोलीय प्रेक्षणों को खतरा हो रहा है।
    • विकासशील देश बड़े ऑपरेटरों के खिलाफ अपने कक्षीय स्लॉट और स्पेक्ट्रम अधिकारों की रक्षा के लिये संघर्ष करते हैं।
  • अंतरिक्ष आपूर्ति शृंखला की कमी: अंतरिक्ष यान के लिये महत्त्वपूर्ण सामग्रियाँ कुछ ही देशों में केंद्रित रहती हैं (चीन दुर्लभ मृदा तत्त्व प्रसंस्करण के 90% को नियंत्रित करता है)।
    • अंतरिक्ष उद्योग की विशिष्ट क्षेत्रों (जैसे- चिप्स के लिये ताइवान) पर निर्भरता रणनीतिक कमज़ोरियाँ उत्पन्न करती है।
    • अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी क्षेत्र में भारत की आयात लागत निर्यात से होने वाली आय से 12 गुना अधिक है

भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र में हाल की प्रमुख उपलब्धियाँ क्या हैं? 

  • स्थिति: वर्ष 2021 में, भारतीय अंतरिक्ष उद्योग ने अंतरिक्ष क्षेत्र में वैश्विक हिस्सेदारी में 2% का योगदान दिया। जिसके वर्ष 2030 तक 8% और वर्ष 2047 तक 15% तक बढ़ने की उम्मीद है।

नीतिगत फ्रेमवर्क और सरकारी सहायता: 

  • भारतीय अंतरिक्ष नीति 2023यह नीति निजी क्षेत्र की भूमिका को परिभाषित करती है और सरकारी तथा निजी दोनों अंतरिक्ष गतिविधियों हेतु प्राधिकरण प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करती है।
    • IN-SPACe: भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्द्धन और प्राधिकरण केंद्र सिंगल विंडो एजेंसी के रूप में कार्य करता है, जो निजी क्षेत्र के सहयोग को बढ़ावा देता है एवं उद्योग समूहों, विनिर्माण केंद्रों तथा ऊष्मायन केंद्रों को समर्थन प्रदान करता है।
    • न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL): ISRO की वाणिज्यिक शाखा के रूप में, NSIL उच्च तकनीक सहयोग को बढ़ावा देता है, प्रौद्योगिकी अंतरण और संसाधनों के एकत्रीकरण के माध्यम से निजी क्षेत्र की भागीदारी की मांग करता है।

हाल की उपलब्धियाँ:

  • चंद्रयान-3 की चंद्र लैंडिंगऐतिहासिक चंद्र दक्षिणी ध्रुव लैंडिंग के कारण 23 अगस्त को राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस’ ​​के रूप में मनाया जाने लगा है।
    • यह भारत की तकनीकी क्षमता को उजागर करता है तथा अंतरिक्ष अन्वेषण में ‘मेक इन इंडिया’ उपागम का प्रतीक है।
  • एक्स-रे पोलारिमीटर सैटेलाइट (XPoSat): जनवरी 2024 में लॉन्च किया जाएगा, यह अंतरिक्ष-आधारित खगोल विज्ञान में भारत की क्षमताओं को आगे बढ़ाएगा।
  • आदित्य-L1 मिशन: सूर्य के वायुमंडल का अध्ययन करने के लिये शुरू किया गया यह मिशन सौर अनुसंधान में भारत की बढ़ती रुचि का प्रतिनिधित्व करता है।

     

    विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

    बाह्य अंतरिक्ष: नवाचार, सुरक्षा और स्थिरता

    यह संपादकीय 21/10/2024 को लाइवमिंट में प्रकाशित “Musk’s SpaceX has taken significant leaps in space exploration” पर आधारित है। इस लेख में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में परिवर्तनकारी प्रगति को उजागर किया गया है, जिसमें स्पेसएक्स जैसी निजी कंपनियों के नेतृत्व में एक्सपेंडेबल रॉकेट से पुन: प्रयोज्य अंतरिक्ष यान में बदलाव पर प्रकाश डाला गया है।

    प्रिलिम्स के लिये:

    पुन: पुन: प्रयोज्य अंतरिक्ष यान,  फाल्कन हेवी मिशनस्टारलिंक,  निम्न-पृथ्वी कक्षा (LEO)जापान का SLIM मिशन,  नासा का आर्टेमिस,  भारत का मंगलयानयूएई का होप प्रोबनासा का पर्सिवरेंस रोवरइंटरनेशनल स्पेस स्टेशनरक्षा अंतरिक्ष एजेंसीमिशन शक्तिजेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोपरूस का ASAT टेस्ट- 2021आउटर स्पेस ट्रीटी-1967भारतीय अंतरिक्ष नीति 2023

    मेन्स के लिये:

    विश्व भर में अंतरिक्ष क्षेत्र को आकार देने वाले हालिया घटनाक्रम, अंतरिक्ष क्षेत्र में प्रगति से उत्पन्न प्रमुख मुद्दे।

    नील आर्मस्ट्रांग के ऐतिहासिक चंद्र यात्रा से लेकर स्पेसएक्स के क्रांतिकारी ‘चॉपस्टिक’ तक, मानवता की अंतरिक्ष महत्त्वाकांक्षाओं ने नवाचार और लागत-प्रभावशीलता में क्वांटम लीप लगाई है। स्पेसएक्स जैसे निजी भागीदारों द्वारा अग्रणी, एक्सपेंडेबल रॉकेट से पुन: प्रयोज्य अंतरिक्ष यान में प्रतिमान बदलाव ने अंतरिक्ष अन्वेषण की संभावनाओं का विस्तार करते हुए प्रक्षेपण लागत को उल्लेखनीय रूप से कम कर दिया है। जैसे-जैसे भारत ISRO और उभरते निजी भागीदारों के माध्यम से अपनी अंतरिक्ष क्षमताओं को प्रबल कर रहा है, तो इसका लक्ष्य एक सुदृढ़ R&D पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देने पर होना चाहिये जो समान तकनीकी सफलताओं को आगे बढ़ा सके।

    विश्व भर में अंतरिक्ष क्षेत्र को आयाम देने वाले हालिया घटनाक्रम क्या हैं? 

    • अंतरिक्ष प्रक्षेपण सेवाओं का व्यवसायीकरण: पिछले 4 वर्षों में, स्पेसएक्स ने 13 मानव अंतरिक्ष उड़ान मिशन लॉन्च किये हैं, 50 चालक दल के सदस्यों को सुरक्षित रूप से पृथ्वी की कक्षा में भेजा है और वापस लाया है, जिससे प्रत्येक फाल्कन हेवी मिशन के लिये प्रक्षेपण लागत लगभग 67 मिलियन डॉलर तक कम हो गई है।
      • स्पेसएक्स ने हाल ही में 20वीं बार अपने फाल्कन 9 बूस्टर को लॉन्च करके पुन: प्रयोज्य रॉकेट प्रौद्योगिकी का प्रदर्शन किया।
      • मैकिन्से के एक अनुमान के अनुसार, इस व्यवसायीकरण से प्रक्षेपण लागत में कमी आई है तथा निम्न-पृथ्वी कक्षा (LEO) में भारी प्रक्षेपण की लागत 65,000 डॉलर प्रति किलोग्राम से घटकर मात्र 1,500 डॉलर प्रति किलोग्राम रह गई है।
      • अंतरिक्ष पर्यटन की पहल जैसे, ब्लू ओरिजिन के न्यू शेपर्ड ने वर्ष 2022 की घटना से पहले छह चालक दल वाली उड़ानें शुरू की थीं।
        • अरबपति जेफ बेजोस ने अपने रॉकेट न्यू शेपर्ड की पहली चालक दल वाली उड़ान के दौरान अंतरिक्ष की संक्षिप्त यात्रा शुरू की।
        • निजी अंतरिक्ष स्टेशनों के लिये योजनाएँ आगे बढ़ रही हैं, एक्ज़िओम वर्ष 2026 में अपने पहले मॉड्यूल लॉन्च की योजना बना रहा है।
    • स्माल सैटेलाइट कॉन्स्टेलेशन का उदयसितंबर 2024 तक 6,000 से अधिक परिचालन उपग्रहों के साथ स्टारलिंक अग्रणी रहा है, जो 60 से अधिक देशों में 2.3 मिलियन से अधिक ग्राहकों को इंटरनेट प्रदान कर रहा है।
      • अमेज़न के प्रोजेक्ट कुइपर की योजना वर्ष 2029 तक 3,236 उपग्रह प्रक्षेपित करने की है।
      • यूटेलसैट के साथ विलय के बाद वनवेब ने वैश्विक कवरेज के लिये 634 उपग्रह तैनात किये हैं।
      • चीन के गुओवांग कॉन्स्टेलेशन ने 13,000 सैटेलाइट की योजना बनाई है, जो इस विशाल कॉन्स्टेलेशन दौड़ में राष्ट्र अभिकर्त्ताओं के प्रवेश को चिह्नित करता है।
    • चंद्रमा मिशन पुनर्जागरण: भारत के चंद्रयान-3 ने अगस्त 2023 में ऐतिहासिक रूप से चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के निकट सॉफ्ट लैंडिंग की, जिससे भारत यह उपलब्धि हासिल करने वाला चौथा देश बन गया।
      • जापान के SLIM मिशन ने जनवरी 2024 में सटीक लैंडिंग क्षमताओं का प्रदर्शन किया। नासा का आर्टेमिस कार्यक्रम शुरू हो गया है, आर्टेमिस II वर्ष 2025 के लिये निर्धारित है, जबकि चीन वर्ष 2028 और 2035 के दौरान पूरा होने वाले एक चंद्र अनुसंधान स्टेशन की स्थापना की योजना बना रहा है।
      • इंट्यूटिव मशीन्स और एस्ट्रोबोटिक जैसी निजी कंपनियाँ वाणिज्यिक चंद्र पेलोड सेवाओं में अग्रणी हैं।
    • मंगल ग्रह अन्वेषण प्रगति: भारत का मंगलयानयूएई का होप प्रोबनासा का पर्सिवरेंस रोवर और चीन का तियानवेन-1/ज़ूरोंग मिशन मंगल ग्रह अन्वेषण के प्रमुख प्रगति हैं।
      • रोज़लिंड फ्रैंकलिन रोवर को वर्ष 2028 में मंगल ग्रह पर प्रक्षेपित किया जाना है।
      • इस मिशन का उद्देश्य मंगल ग्रह की सतह पर पूर्व जीवन के संकेतों की खोज करना तथा ग्रह के भू-विज्ञान और पर्यावरण के बारे में महत्त्वपूर्ण डेटा एकत्र करना है।
    • रक्षा अंतरिक्ष क्षमताएँ: अमेरिकी अंतरिक्ष बल को वित्त वर्ष 2024 के लिये 30 बिलियन डॉलर का बजट प्राप्त हुआ, जिसमें अंतरिक्ष डोमेन जागरूकता और रेज़िलिएंट सैटेलाइट नेटवर्क पर ध्यान केंद्रित किया गया।
      • भारत ने रक्षा अंतरिक्ष एजेंसी की स्थापना की और मिशन शक्ति के माध्यम से ASAT क्षमताओं का प्रदर्शन किया।
        • इसके अलावा, भारत वर्ष 2030 तक अपना स्वयं का अंतरिक्ष स्टेशन लॉन्च करने की योजना बना रहा है।
      • चीन द्वारा अंतरिक्ष में अपनी क्षमताओं का निरंतर विकास करने, जिसमें संभावित रोबोटिक आर्म प्रौद्योगिकी से युक्त SJ-21 उपग्रह भी शामिल है, ने अंतरिक्ष सुरक्षा पर वैश्विक ध्यान बढ़ाने को प्रेरित किया है।
    • गहन अंतरिक्ष अन्वेषण: नासा का OSIRIS-REx वर्ष 2023 में बेन्नू से क्षुद्रग्रह के नमूने सफलतापूर्वक वापस लाएगा।
      • बृहस्पति के चंद्रमाओं का अध्ययन करने के लिये ESA का JUICE मिशन लॉन्च किया गया। चीन ने नेपच्यून का अध्ययन करने के लिये अपने तियानवेन-4 मिशन की घोषणा की, जो इस विशालकाय हिम ग्रह के लिये पहला समर्पित मिशन है।
      • जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप दूरस्थ आकाशगंगाओं और बाह्यग्रहों के बारे में हमारी समझ में क्रांतिकारी बदलाव ला रहा है।

    अंतरिक्ष क्षेत्र में प्रगति से उत्पन्न प्रमुख मुद्दे क्या हैं? 

    • अंतरिक्ष मलबा संकट: निम्न-पृथ्वी कक्षा (LEO) में लाखों मलबे के टुकड़े मौजूद हैं, जिनका आकार सॉफ्टबॉल के आकार से कम से कम 26,000 गुना या उससे भी बड़ा है, जो टकराने पर उपग्रह को नष्ट कर सकते हैं।
      • रूस का ASAT टेस्ट- 2021 से ट्रैक करने योग्य 1,500 से अधिक मलबे के टुकड़े उत्पन्न हुए।
      • फरवरी 2022 में स्टारलिंक और चीन के अंतरिक्ष स्टेशन के बीच टकराव के खतरे ने अंतर्राष्ट्रीय यातायात प्रबंधन की तत्काल आवश्यकता को उजागर किया है।
      • सफाई की लागत अरबों डॉलर आँकी गई है, जबकि वर्तमान तकनीक प्रतिवर्ष केवल कुछ वस्तुओं को हटाने तक ही सीमित है।
      • स्पेस ऑब्जेक्ट के कारण होने वाली हानि के लिये अंतर्राष्ट्रीय दायित्व पर कन्वेंशन (वर्ष 1972) और बाह्य अंतरिक्ष में प्रक्षेपित वस्तुओं के पंजीकरण पर कन्वेंशन (वर्ष 1976) सहित संयुक्त राष्ट्र संधियों का उद्देश्य अंतरिक्ष मलबे को विनियमित करना है।
        • हालाँकि ये फ्रेमवर्क क्रियान्वयन में बहुत हद तक अप्रभावी बने हुए हैं।
    • अंतरिक्ष का शस्त्रीकरण: अमेरिकी अंतरिक्ष बल का वर्ष 2024 का बजट 30 बिलियन डॉलर बढ़ाया गया, जिसमें अंतरिक्ष युद्ध क्षमताओं पर ध्यान केंद्रित किया गया।
      • हाल ही में संघर्षों के दौरान सैटेलाइट जामिंग की घटनाएँ (विशेष रूप से यूक्रेन में) अंतरिक्ष आधारित इलेक्ट्रॉनिक युद्ध में वृद्धि को दर्शाती हैं।
      • 80 से अधिक देशों के पास उपग्रह हैं और इनमें से कई देश अंतरिक्ष प्रणालियों और सेवाओं तक पहुँच को अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा में महत्त्वपूर्ण योगदानकर्त्ता मानते हैं, जिससे संभावित अंतरिक्ष सैन्यीकरण के बारे में चिंताएँ बढ़ रही हैं।
        • इसके अलावाविकासशील देशों को महत्त्वपूर्ण उपग्रह सेवाओं तक सीमित पहुँच के कारण ‘स्पेस डिवाइड’ का सामना करना पड़ रहा है, जिससे आपदा प्रबंधन और संचार प्रभावित हो रहा है।
    • प्रक्षेपणों का पर्यावरणीय प्रभाव: अध्ययनों से पता चलता है कि रॉकेट प्रक्षेपण से ओज़ोन परत का क्षय होता है तथा ठोस रॉकेट मोटरों से उत्सर्जित होने वाले एल्युमीनियम ऑक्साइड कण विशेष रूप से चिंताजनक हैं।
      • स्पेसएक्स की बढ़ी हुई प्रक्षेपण आवृत्ति के कारण ऊपरी वायुमंडल में महत्त्वपूर्ण प्रदूषक उत्सर्जित होते हैं तथा प्रत्येक फाल्कन 9 प्रक्षेपण से लगभग 336 टन CO2 उत्सर्जित होती है।
      • उपग्रहों के पुनःप्रवेश से ऊपरी वायुमंडल में एल्युमीनियम की मात्रा बढ़ रही है। प्रक्षेपण आवृत्ति में तेज़ी से हो रही वृद्धि के कारण पर्यावरणीय प्रभाव आकलन में विलंब हो रहा है।
    • कानूनी और नियामक अंतराल: आउटर स्पेस ट्रीटी-1967 वर्तमान वाणिज्यिक अंतरिक्ष गतिविधियों के लिये अपर्याप्त है।
      • अंतरिक्ष में संपत्ति के अधिकार अभी भी अनिर्धारित हैं, जिससे चंद्रमा और क्षुद्रग्रह खनन योजनाओं के लिये अनिश्चितता उत्पन्न हो रही है।
      • स्पेस टूरिज़्म एक नियामक ग्रे क्षेत्र में संचालित होता है, जहाँ नियामक निकाय वर्जिन गैलेक्टिक की उड़ान पथ विचलन घटना के बाद सुरक्षा मानकों को परिभाषित करने के लिये संघर्ष कर रहे हैं।
    • अंतरिक्ष स्पेक्ट्रम आवंटन संघर्ष: वर्ष 2019 के बाद से सैटेलाइट कॉन्स्टेलेशन अनुप्रयोगों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, जिससे उपलब्ध रेडियो आवृत्तियों पर दबाव पड़ रहा है।
      • सेकंड जनरेशन के स्टारलिंक उपग्रहों से 30 गुना अधिक रेडियो इंटरवेंशन लीक हो रहा है, जिससे खगोलीय प्रेक्षणों को खतरा हो रहा है।
      • विकासशील देश बड़े ऑपरेटरों के खिलाफ अपने कक्षीय स्लॉट और स्पेक्ट्रम अधिकारों की रक्षा के लिये संघर्ष करते हैं।
    • अंतरिक्ष आपूर्ति शृंखला की कमी: अंतरिक्ष यान के लिये महत्त्वपूर्ण सामग्रियाँ कुछ ही देशों में केंद्रित रहती हैं (चीन दुर्लभ मृदा तत्त्व प्रसंस्करण के 90% को नियंत्रित करता है)।
      • अंतरिक्ष उद्योग की विशिष्ट क्षेत्रों (जैसे- चिप्स के लिये ताइवान) पर निर्भरता रणनीतिक कमज़ोरियाँ उत्पन्न करती है।
      • अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी क्षेत्र में भारत की आयात लागत निर्यात से होने वाली आय से 12 गुना अधिक है

    भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र में हाल की प्रमुख उपलब्धियाँ क्या हैं? 

    • स्थिति: वर्ष 2021 में, भारतीय अंतरिक्ष उद्योग ने अंतरिक्ष क्षेत्र में वैश्विक हिस्सेदारी में 2% का योगदान दिया। जिसके वर्ष 2030 तक 8% और वर्ष 2047 तक 15% तक बढ़ने की उम्मीद है।

    नीतिगत फ्रेमवर्क और सरकारी सहायता: 

    • भारतीय अंतरिक्ष नीति 2023यह नीति निजी क्षेत्र की भूमिका को परिभाषित करती है और सरकारी तथा निजी दोनों अंतरिक्ष गतिविधियों हेतु प्राधिकरण प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करती है।
      • IN-SPACe: भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्द्धन और प्राधिकरण केंद्र सिंगल विंडो एजेंसी के रूप में कार्य करता है, जो निजी क्षेत्र के सहयोग को बढ़ावा देता है एवं उद्योग समूहों, विनिर्माण केंद्रों तथा ऊष्मायन केंद्रों को समर्थन प्रदान करता है।
      • न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL): ISRO की वाणिज्यिक शाखा के रूप में, NSIL उच्च तकनीक सहयोग को बढ़ावा देता है, प्रौद्योगिकी अंतरण और संसाधनों के एकत्रीकरण के माध्यम से निजी क्षेत्र की भागीदारी की मांग करता है।

    हाल की उपलब्धियाँ:

    • चंद्रयान-3 की चंद्र लैंडिंगऐतिहासिक चंद्र दक्षिणी ध्रुव लैंडिंग के कारण 23 अगस्त को राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस’ ​​के रूप में मनाया जाने लगा है।
      • यह भारत की तकनीकी क्षमता को उजागर करता है तथा अंतरिक्ष अन्वेषण में ‘मेक इन इंडिया’ उपागम का प्रतीक है।
    • एक्स-रे पोलारिमीटर सैटेलाइट (XPoSat): जनवरी 2024 में लॉन्च किया जाएगा, यह अंतरिक्ष-आधारित खगोल विज्ञान में भारत की क्षमताओं को आगे बढ़ाएगा।
    • आदित्य-L1 मिशन: सूर्य के वायुमंडल का अध्ययन करने के लिये शुरू किया गया यह मिशन सौर अनुसंधान में भारत की बढ़ती रुचि का प्रतिनिधित्व करता है।

     

    • स्टार्टअप और निजी क्षेत्र का विकास: 
      • उभरते स्टार्टअप: इस क्षेत्र में 101 अंतरिक्ष-संबंधी स्टार्टअप हैं, जिनका कुल वित्तपोषण 108.5 मिलियन अमेरिकी डॉलर है
        • स्काईरूट एयरोस्पेस ने भारत का पहला निजी स्तर पर विकसित रॉकेट विक्रम-S लॉन्च किया;
        • अग्निकुला कॉसमॉस ने एक निजी लॉन्च पैड की स्थापना की।
        • बेलाट्रिक्स एयरोस्पेस प्रणोदन प्रौद्योगिकियों में विशेषज्ञता रखती है।

    अंतरिक्ष क्षेत्र के संतुलित विकास को सुनिश्चित करने हेतु क्या उपाय अपनाए जा सकते हैं? 

    • अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष यातायात प्रबंधन ढाँचा: विमानन के लिये अंतर्राष्ट्रीय नागरिक विमानन संगठन के समान बाध्यकारी नियामक शक्तियों के साथ संयुक्त राष्ट्र के नेतृत्व में अंतरिक्ष यातायात प्रबंधन प्राधिकरण की स्थापना करनी चाहिये।
      • अंतरिक्ष मलबे को कम करने के लिये अनिवार्य दिशा-निर्देशों को लागू करना तथा अनुपालन न करने पर दंड का प्रावधान करना चाहिये।
      • वास्तविक टाइम ट्रैकिंग क्षमताओं के साथ एक वैश्विक अंतरिक्ष वस्तु पंजीकरण प्रणाली स्थापित करना चाहिये।
      • वनवेब के लियोलैब्स टकराव परिहार प्रणाली का अनुसरण करते हुए, सभी नए उपग्रहों के लिये टकराव परिहार प्रणाली अनिवार्य होनी चाहिये
      • उपग्रह के जीवन-अंत निपटान के लिये अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मानक विकसित करना चाहिये।
    • अंतरिक्ष स्थिरता निधि और प्रोत्साहन: मलबा निष्कासन और स्थिरता परियोजनाओं के लिये एक वैश्विक निधि बनाए जाने चाहिये।
      • हरित प्रणोदन प्रणालियाँ विकसित करने वाली कंपनियों को कर प्रोत्साहन प्रदान किये जाने चाहिये।
      • उपग्रह के जीवनकाल और मलबे के जोखिम के आधार पर कक्षीय उपयोग शुल्क निर्धारित करते हुए “प्रदूषणकर्त्ता भुगतान करे” सिद्धांत को लागू करना चाहिये।
      • प्रक्षेपण लागत को कम करने में स्पेसएक्स की उपलब्धि को ध्यान में रखते हुए, पुन: प्रयोज्य प्रौद्योगिकी के विकास को प्रोत्साहित करना चाहिये।
    • अंतरिक्ष तक पहुँच का लोकतंत्रीकरण: सार्वजनिक-निजी भागीदारी के माध्यम से क्षेत्रीय अंतरिक्ष बंदरगाहों का विकास करना चाहिये।
      • स्थापित और उभरते अंतरिक्ष राष्ट्रों के बीच प्रौद्योगिकी हस्तांतरण कार्यक्रम स्थापित करना चाहिये , जैसा कि अफ्रीकी अंतरिक्ष एजेंसियों के साथ ईएसए का सफल सहयोग करना।
      • इसरो के आपदा निगरानी डेटा साझाकरण मॉडल को आधार बनाते हुए अंतर्राष्ट्रीय उपग्रह डेटा साझाकरण प्रोटोकॉल स्थापित करना चहिये।
      • तकनीकी सहायता और प्रक्षेपण कोटा के माध्यम से विकासशील देशों में छोटे उपग्रह विकास को समर्थन प्रदान करना चाहिये।
    • उन्नत अंतरिक्ष शिक्षा और कार्यबल विकास: वैश्विक अंतरिक्ष शिक्षा पहल शुरू करना।
      • विकासशील क्षेत्रों में अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष विश्वविद्यालय स्थापित करें तथा नासा के सफल वाणिज्यिक क्रू कार्यक्रम मॉडल के समान पारंपरिक अंतरिक्ष एजेंसियों को निजी क्षेत्र से जोड़ने हेतु प्रशिक्षुता कार्यक्रम स्थापित किये जाने चाहिये।
      • छात्रवृत्ति कार्यक्रमों के माध्यम से विकासशील देशों में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी पर केंद्रित STEM शिक्षा का समर्थन करना चाहिये।
    • पर्यावरण संरक्षण उपाय: सभी प्रक्षेपणों के लिये पर्यावरणीय प्रभाव आकलन को अनिवार्य किया जाना चाहिये, जिसमें ऊपरी वायुमंडल पर पड़ने वाले प्रभावों को मापन किया जाए।
      • हरित प्रणोदन प्रणालियों के उपयोग की आवश्यकता को समझें और वायुमंडल पर प्रक्षेपण प्रभावों की जानकारी हेतु एक अंतरिक्ष पर्यावरण निगरानी नेटवर्क की स्थापना करनी चाहिये।
      • अंतरिक्ष हार्डवेयर के लिये रीसाइक्लिंग आवश्यकताएँ निर्धारित करें, साथ ही अंतरिक्ष गतिविधियों के लिये कार्बन ऑफसेट आवश्यकताओं को लागू करना चाहिये।
    • कानूनी और नियामक ढाँचे का आधुनिकीकरण: वाणिज्यिक अंतरिक्ष गतिविधियों को संबोधित करने वाले अतिरिक्त प्रोटोकॉल के माध्यम से बाह्य अंतरिक्ष संधि को अद्यतन करना चाहिये।
      • वैज्ञानिक हितों की रक्षा करते हुए अंतरिक्ष संसाधनों के लिये स्पष्ट संपत्ति अधिकार ढाँचा स्थापित करना चाहिये।
      • वर्जिन गैलेक्टिक की घटनाओं से सीख लेते हुए अंतरिक्ष पर्यटन के लिये मानकीकृत सुरक्षा नियम विकसित करें। साथ ही, अंतरिक्ष अवसंरचना सुरक्षा के लिये साइबर सुरक्षा मानकों को लागू किये जाने चाहिये।

    निष्कर्ष: 

    अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में तीव्रता से हुई प्रगति ने मानवता की क्षमताओं को विस्तारित किया है, लेकिन इसने अंतरिक्ष मलबे और विनियामक अंतराल जैसी महत्त्वपूर्ण चुनौतियों को भी उत्पन्न किया है। एक चिरस्थायी और संतुलित वैश्विक अंतरिक्ष पारिस्थितिकी तंत्र के लिये, सहयोगात्मक ढाँचे, लोकतांत्रिक पहुँच एवं मज़बूत नियामक उपायों की आवश्यकता है। भारत, इसरो और निजी भागीदारी दोनों का लाभ उठाते हुए, अंतरिक्ष अन्वेषण में एक प्रमुख वैश्विक अभिकर्त्ता के रूप में उभरने की क्षमता रखता है।

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